
Raja Bhaiya: राजा भैया धीरे-धीरे राजनीति से कर रहे किनारा, अब विरासत संभालेंगे ‘बड़े राजा’ और ‘छोटे राजा’
Raja Bhaiya: उत्तर प्रदेश की राजनीति में ‘राजा भैया’ नाम से मशहूर कुंवर रघुराज प्रताप सिंह अब धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। सियासी गलियारों में ये चर्चा तेज़ हो गई है कि राजा भैया अब अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटों को सौंपने की तैयारी में हैं। जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के मंच से उनके दोनों बेटों – शिवराज प्रताप सिंह और ब्रजराज प्रताप सिंह – ने अब राजनीति में आधिकारिक एंट्री कर ली है।
यह घटनाक्रम केवल एक साधारण सदस्यता ग्रहण नहीं बल्कि प्रतापगढ़ की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। बीते कुछ समय से राजा भैया की सार्वजनिक सक्रियता में आई कमी और उनके बेटों की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी इस ओर इशारा कर रही है कि अब सियासत की कमान ‘नए राजाओं’ के हाथ में सौंपी जा रही है।
पार्टी में शामिल होकर दी सियासत में दस्तक
जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. के.एन. ओझा की उपस्थिति में दोनों बेटों ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीति का पहला ठोस कदम है। राजा भैया के करीबी सूत्र बताते हैं कि अब वह मार्गदर्शक की भूमिका निभाना चाहते हैं और आने वाले चुनावों में अपने बेटों को आगे लाने की योजना बना रहे हैं।
राजनीतिक तैयारियों में जुटे युवराज
‘बड़े राजा’ शिवराज प्रताप सिंह और ‘छोटे राजा’ ब्रजराज प्रताप सिंह ने हाल के महीनों में मंदिरों में दर्शन, सामाजिक आयोजनों में भागीदारी और जनसंपर्क कार्यक्रमों के ज़रिए जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। प्रतापगढ़ और आसपास के इलाकों में दोनों युवाओं की मौजूदगी को स्थानीय जनता और समर्थकों से अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। उन्हें ‘युवराज’ कहकर संबोधित किया जा रहा है, और जनता में उनके प्रति उत्सुकता भी बढ़ती दिख रही है।
राजा भैया का सियासी सफर
1993 में पहली बार विधायक बनने के बाद से राजा भैया उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम चेहरा बने रहे हैं। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में शुरुआत करने वाले राजा भैया ने बाद में अपनी पार्टी ‘जनसत्ता दल लोकतांत्रिक’ की स्थापना की और उसी के तहत चुनाव लड़ा। वे सात बार विधायक रह चुके हैं और अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व, स्वतंत्र छवि और जनाधार के लिए जाने जाते हैं।
2003 की यादें: जब पिता जेल में और बेटे नवजात थे
शिवराज और ब्रजराज का जन्म वर्ष 2003 में हुआ था। उसी वर्ष राजा भैया को आतंकवादी गतिविधियों के रोकथाम कानून (POTA) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस समय वह जेल में थे और अपने नवजात बेटों को ठीक से देख भी नहीं सके थे। यह घटना उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ रही। दो दशक बाद अब वही बेटे उनके अधूरे सपनों को आगे बढ़ाने की राह पर निकल पड़े हैं।
सिंधिया स्कूल से मिली बुनियाद
शिवराज और ब्रजराज ने ग्वालियर के प्रतिष्ठित सिंधिया स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की है। यह स्कूल देश की नामचीन हस्तियों और राजघरानों के बच्चों की पहली पसंद रहा है। यहां से शिक्षा प्राप्त करने के बाद अब दोनों युवराज राजनीति के मैदान में उतरने की तैयारी में हैं।
2027 का विधानसभा चुनाव हो सकता है अगला पड़ाव
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजा भैया के बेटों की जनसंपर्क गतिविधियों और सोशल मीडिया पर सक्रियता को देखते हुए यह कयास लगाए जा रहे हैं कि 2027 का विधानसभा चुनाव उनका अगला बड़ा पड़ाव हो सकता है। हालांकि, अभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में इसको लेकर उत्साह साफ देखा जा सकता है।
जनमानस में यह सवाल गूंजने लगा है कि क्या प्रतापगढ़ एक बार फिर सियासी बदलाव का गवाह बनेगा? राजा भैया के लंबे राजनीतिक सफर की छाया में उनके बेटों की राजनीतिक यात्रा कितनी लंबी और प्रभावशाली होगी, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन एक बात साफ है – प्रतापगढ़ की राजनीति अब बदलाव की ओर बढ़ चली है।