
H-1B Visa Fee Changes: भारत को तगड़ा झटका! H-1B वीजा की फीस आसमान छू गई, आखिर क्या चाहते हैं ट्रंप?
H-1B Visa Fee Changes: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बार H-1B वीज़ा को लेकर ऐसा कदम उठाया है, जिससे अमेरिका जाने का सपना देखने वाले खासकर भारतीय पेशेवरों में मायूसी फैल गई है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा की फीस एक झटके में एक लाख डॉलर यानी लगभग 90 लाख रुपये कर दी है, जो 21 सितंबर से लागू हो जाएगा।
व्हाइट हाउस की आधिकारिक घोषणा के अनुसार अब किसी भी कंपनी को, अगर वह किसी विदेशी पेशेवर को अमेरिका बुलाना चाहती है, तो उसके लिए 1 लाख डॉलर की भारी-भरकम फीस चुकानी होगी। ट्रंप ने ऐलान करते हुए कहा कि यह नियम सुनिश्चित करेगा कि केवल वे ही वर्कर्स अमेरिका आ सकें, जिनकी स्किल वाकई बेहतरीन हो और जिनकी जगह अमेरिकी कर्मचारी नहीं ले सकते।
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H-1B Visa Fee Changes: अचानक क्यों बदला H-1B वीज़ा का नियम?
ट्रंप का यह कदम कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है। दरअसल, अपने चुनाव प्रचार के दौरान से ही वह “अमेरिका फर्स्ट” की नीति पर जोर देते रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिकी नौकरियां सबसे पहले अमेरिकियों को ही मिलनी चाहिए। (H-1B Visa Fee Changes) ट्रंप का आरोप है कि विदेशी प्रवासी बड़ी संख्या में अमेरिकियों की नौकरियां छीन रहे हैं। इसी वजह से वह लगातार इमिग्रेशन और वीज़ा के नियमों को सख्त करते आ रहे हैं। यह फैसला उनके उसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा माना जा रहा है। हालांकि आलोचक कह रहे हैं कि इतने सख्त नियम से अमेरिका की कंपनियों को नुकसान होगा, क्योंकि उन्हें दुनिया भर से टैलेंट लाना मुश्किल हो जाएगा।
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भारतीयों के सपनों पर सबसे बड़ा असर
अगर किसी देश के नागरिकों को इस फैसले से सबसे बड़ा नुकसान होने वाला है, तो वह है भारत। हर साल हजारों भारतीय आईटी सेक्टर से जुड़े वर्कर्स, इंजीनियर और अन्य पेशेवर H-1B वीज़ा के जरिए अमेरिका जाते हैं। (H-1B Visa Fee Changes) सिलिकॉन वैली की तमाम बड़ी टेक कंपनियां इसी वीज़ा पर भारतीय कर्मचारियों को नौकरी देती हैं।
पहले जहां H-1B वीज़ा के लिए लगभग 6.1 लाख रुपये फीस देनी पड़ती थी, वहीं अब यह आंकड़ा 90 लाख तक पहुंच गया है। (H-1B Visa Fee Changes) इतनी भारी-भरकम रकम छोटी और मध्यम स्तर की कंपनियों के लिए किसी भी विदेशी को बुलाना लगभग असंभव कर देगी। इसका सीधा मतलब है कि भारत जैसे देशों के लाखों पेशेवरों के लिए अमेरिका की राह और मुश्किल हो गई है।
H-1B वीज़ा आखिर है क्या?
H-1B वीज़ा अमेरिका का एक गैर-आप्रवासी वर्क वीज़ा है। यह उन कुशल पेशेवरों को अस्थायी तौर पर अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है, जिनके पास किसी विशेष क्षेत्र में विशेषज्ञता होती है। इसमें आईटी, इंजीनियरिंग, मेडिसिन और फाइनेंस जैसे सेक्टर शामिल हैं।
इस वीज़ा की सबसे बड़ी मांग भारतीयों के बीच है। अमेरिका की आईटी इंडस्ट्री भारतीय कर्मचारियों पर लंबे समय से निर्भर रही है। लेकिन अब इतनी ज्यादा फीस होने की वजह से कंपनियों के लिए भारतीयों को बुलाना मुश्किल हो जाएगा।
कंपनियों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
ट्रंप के इस फैसले पर अमेरिका की टेक कंपनियों ने चिंता जताई है। उनका कहना है कि अमेरिकी मार्केट में अभी भी उतने कुशल कर्मचारी नहीं हैं, जितनी मांग है। ऐसे में अगर विदेशी टैलेंट को रोकने की कोशिश की जाएगी, तो कंपनियों को बड़े नुकसान झेलने पड़ सकते हैं। (H-1B Visa Fee Changes) वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भारत और अमेरिका के रिश्तों पर भी असर डाल सकता है। भारत लंबे समय से अमेरिका को आईटी और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मानव संसाधन उपलब्ध कराता आया है। अब जब रास्ता महंगा हो गया है, तो भारतीय पेशेवर अन्य देशों जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप का रुख कर सकते हैं।
सपनों के लिए अब और मुश्किल राह
अमेरिका जाने का सपना दुनिया के लाखों युवाओं का होता है, लेकिन अब यह सपना और भी महंगा और मुश्किल हो गया है। (H-1B Visa Fee Changes) 90 लाख रुपये की फीस आम नौकरीपेशा या मध्यमवर्गीय परिवार के लिए लगभग नामुमकिन है। इससे यह साफ है कि H-1B वीज़ा अब सिर्फ चुनिंदा और बेहद अमीर कंपनियों के कर्मचारियों के लिए ही सुलभ रहेगा।
