South India Famous Temple: एक बार अवश्य करे दक्षिण भारत के इन मंदिरों में दर्शन

South India Famous Temple: एक बार अवश्य करे दक्षिण भारत के इन मंदिरों में दर्शन

 

South India Famous Temple: एक बार अवश्य करे दक्षिण भारत के इन मंदिरों में दर्शन

 

South India Famous Temple: भारत की पहचान उसकी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक विविधता से होती है। विशेषकर दक्षिण भारत अपने प्राचीन मंदिरों, अद्भुत वास्तुकला और गहन आध्यात्मिक वातावरण के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ के मंदिर कला, स्थापत्य और इतिहास के जीवंत साक्षी हैं। (South India Famous Temple) यदि आप एक आध्यात्मिक यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो दक्षिण भारत के इन प्रसिद्ध मंदिरों को अपनी सूची में अवश्य शामिल करें।

मीनाक्षी अम्मन मंदिर (मदुरै, तमिलनाडु)

मीनाक्षी अम्मन मंदिर मदुरै की पहचान और दक्षिण भारत की वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। (South India Famous Temple) यह मंदिर देवी मीनाक्षी (पार्वती जी का स्वरूप) और भगवान सुंदरश्वरर (शिव) को समर्पित है। मंदिर परिसर में कुल 14 विशाल गोपुरम (प्रवेश द्वार/टावर) बने हुए हैं, जिन पर हजारों रंग-बिरंगी व बारीक नक्काशीदार मूर्तियाँ अंकित हैं। लगभग 45 – 50 मीटर ऊँचे मुख्य गोपुरम इसकी भव्यता और द्रविड़ शैली की अद्भुत कला को दर्शाते हैं। इसका प्रारंभिक निर्माण 6वीं शताब्दी में माना जाता है, लेकिन वर्तमान भव्य स्वरूप नायक वंश, विशेषकर तिरुमलाई नायक (16वीं–17वीं शताब्दी) के काल में प्राप्त हुआ। नायक शासकों ने इसके पुनर्निर्माण और विस्तार में विशेष योगदान देकर इसे दक्षिण भारत के सबसे आकर्षक मंदिर परिसरों में बदल दिया। धार्मिक दृष्टि से भी यह मंदिर अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ हर वर्ष चैत्र माह (अप्रैल – मई) में ‘मीनाक्षी तिरुकल्याणम्’ अर्थात् देवी मीनाक्षी और भगवान सुंदरश्वरर का विवाह महोत्सव अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं और मदुरै की सांस्कृतिक धरोहर का भी आधार है।

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बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर, तमिलनाडु)

बृहदेश्वर मंदिर जिसे चोल साम्राज्य की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है, द्रविड़ वास्तुकला की अद्भुत भव्यता को दर्शाता है। (South India Famous Temple) इसका मुख्य गोपुरम लगभग 216 फीट (66 मीटर) ऊँचा है, जो अपनी भव्यता और कलात्मक उत्कृष्टता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर की एक और विशेषता है यहाँ स्थापित विशाल नंदी प्रतिमा, जो एक ही पत्थर से निर्मित है और जिसका वजन लगभग 20,000 किलो है। इस अनोखे मंदिर का निर्माण चोल सम्राट राजा राजा चोल प्रथम ने 11वीं सदी (1003 – 1010 ई.) में करवाया था। मंदिर पूरी तरह ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया है जबकि यह पत्थर उस क्षेत्र में उपलब्ध नहीं था, इसलिए इन्हें दूरस्थ स्थानों से मंगवाया गया। आज यह मंदिर न केवल दक्षिण भारतीय स्थापत्य और कला का गौरव है, बल्कि यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल होकर भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक बन चुका है।

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विट्ठल मंदिर (हम्पी, कर्नाटक)

विट्ठल मंदिर विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला और सांस्कृतिक वैभव का अद्भुत उदाहरण है। (South India Famous Temple) यह मंदिर भगवान विष्णु के विट्ठल रूप को समर्पित है और अपनी अनूठी कलात्मक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर का सबसे प्रमुख आकर्षण ‘रथ मंदिर’ या स्टोन चैरियट है, जो ग्रेनाइट पत्थर से बना हुआ है और भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ का प्रतीक माना जाता है। इसका निर्माण 15वीं शताब्दी (लगभग 1422 – 1446 ई.) में प्रारंभ हुआ और बाद में विजयनगर के विभिन्न शासकों ने इसमें विस्तार कराया। विट्ठल मंदिर का एक और अनोखा आकर्षण इसके ‘महामंडप’ में स्थित 56 संगीत स्तंभ हैं, जिन्हें हल्के से थपथपाने पर अलग-अलग स्वर उत्पन्न होते हैं। इन्हें ‘सारेगामा स्तंभ’ भी कहा जाता है और ये मंदिर की भव्यता को और भी अद्वितीय बनाते हैं। यह मंदिर विजयनगर युग की कला, संस्कृति और अद्भुत स्थापत्य कौशल का जीवंत प्रतीक है।

रामनाथस्वामी मंदिर (रामेश्वरम, तमिलनाडु)

रामनाथस्वामी मंदिर, जिसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है, भगवान शिव को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिन्दू धर्म की पवित्र चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मंदिर अपने स्थापत्य और धार्मिक महत्व के लिए विशेष पहचान रखता है। यहाँ का मंदिर गलियारा लगभग 1200 मीटर (3937 फीट) लंबा है जिसे विश्व का सबसे लंबा मंदिर गलियारा माना जाता है। (South India Famous Temple) इस विशाल गलियारे में बने हजारों सुंदर स्तंभ द्रविड़ वास्तुकला की भव्यता का प्रतीक हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने से पहले यहीं शिवलिंग की स्थापना की थी ताकि भगवान शिव का आशीर्वाद मिल सके और रावण वध से जुड़ी पितृहत्या के पाप से मुक्ति प्राप्त हो। यही कारण है कि यह स्थान रामायण के युद्धकांड से सीधा संबंध रखता है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। मंदिर परिसर में स्थित 22 पवित्र कुण्ड (तीर्थम) भी धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं, जहाँ स्नान करना पुण्यदायी और आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित, भगवान विष्णु के अनंतशयन रूप को समर्पित एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है। (South India Famous Temple) यहाँ भगवान विष्णु की 18 फीट ऊँची भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है जिसमें वे शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। (South India Famous Temple) इस मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ और केरल शैली का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है जिसमें विशाल गोपुरम और लंबे, कलात्मक गलियारे इसकी भव्यता को और बढ़ाते हैं। मंदिर न केवल अपनी धार्मिक और स्थापत्य महिमा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी रहस्यमयी संपत्ति के कारण भी चर्चा में रहा है। वर्ष 2011 में यहाँ के गुप्त खजाने का खुलासा हुआ जिसमें सोना, हीरे, कीमती रत्न, प्राचीन मुहरें और बहुमूल्य वस्तुओं का विशाल भंडार मिला। इसकी कीमत अरबों रुपये आँकी गई, जिससे यह मंदिर दुनिया के सबसे समृद्ध मंदिरों में गिना जाने लगा।

तिरुपति बालाजी मंदिर जिसे श्री वेंकटेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भगवान विष्णु के वेंकटेश्वर स्वरूप को समर्पित है और भारत के सबसे लोकप्रिय एवं पूजनीय मंदिरों में गिना जाता है। प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं, जबकि विशेष पर्व और अवसरों पर यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है। (South India Famous Temple )मंदिर का निर्माण प्राचीन काल से निरंतर होता आया है जिसमें विशेष रूप से विजयनगर साम्राज्य का योगदान उल्लेखनीय रहा है। इसकी भव्यता और स्थापत्य द्रविड़ शैली की उत्कृष्ट झलक प्रस्तुत करते हैं। धार्मिक महत्व के साथ-साथ यह मंदिर अपनी प्रसिद्ध ‘लड्डू प्रसाद’ के लिए भी जाना जाता है, जिसे भक्त बड़े श्रद्धा भाव से ग्रहण करते हैं। आर्थिक दृष्टि से भी तिरुपति बालाजी मंदिर अत्यंत समृद्ध है और दान राशि के मामले में यह दुनिया के सबसे धनी मंदिरों में से एक माना जाता है।

वैकुंठ पेरुमल मंदिर भगवान विष्णु की वैष्णव परंपरा का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा क्रियाशील हिंदू मंदिर परिसर भी माना जाता है। (South India Famous Temple) अपनी भव्यता और अद्वितीय वास्तुकला के कारण यह मंदिर विशेष पहचान रखता है। इसका इतिहास अत्यंत प्राचीन है जिसका संबंध प्रारंभिक संगमकाल (लगभग 3री सदी ईसा पूर्व से 4थी सदी ईस्वी) से माना जाता है। समय के साथ चोल और पांड्य शासकों ने इसके विस्तार और संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि स्थापत्य कला के लिहाज से भी अत्यंत समृद्ध हो गया। यहाँ हर वर्ष भव्यता से आयोजित होने वाला वैकुंठ एकादशी महोत्सव लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस दिन ‘परमपद वासल’ या वैकुंठ द्वार खोला जाता है, जिसे मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है और भक्त इस पावन अवसर पर भगवान विष्णु के दर्शन कर स्वयं को धन्य समझते हैं।

सबरीमाला मंदिर जो भगवान अयप्पा को समर्पित है, पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के बीच स्थित एक अत्यंत पवित्र तीर्थस्थल है। (South India Famous Temple) यहाँ तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कठिन जंगल यात्रा और लगभग पाँच किलोमीटर की पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है, जिससे यह यात्रा स्वयं में तपस्या का प्रतीक बन जाती है। मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए भक्तों को 18 पवित्र सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं, जो इसकी वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्व का अहम हिस्सा हैं। यह मंदिर संयम, तपस्या और ब्रह्मचर्य की परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान अयप्पा शिव और विष्णु के संगम से उत्पन्न हुए थे और यह मंदिर उनके ध्यान स्थल पर स्थापित है। यहाँ दर्शन केवल विशेष अवसरों पर संभव होते हैं। विशेषकर नवंबर से जनवरी के बीच, जब लाखों भक्त इस कठिन यात्रा का हिस्सा बनते हैं। यह वार्षिक तीर्थयात्रा दक्षिण भारत की सबसे बड़ी और आस्था से भरी यात्राओं में से एक मानी जाती है।

 

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